परिश्रम और भाग्य
दुनिया में लोग अक्सर सोचते है की क्या भाग्य श्रेष्ठ है या हमारा परिश्रम . लेकिन कभी कभी इस उत्तर ढूढना बहुत मुश्किल हो जाता है..हमारे जीवन में ऐसी कुछ घटनाये घटित होती है जो इस बात को प्रबल करती है की शायद भाग्य श्रेष्ठ है...
क्या बिना परिश्रम भी हमे कुछ मिल सकता है?
तो इसका जवाब है ना,संस्कृत में सही ही कहा गया है...उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि ना मनोरथै: ,ना प्रविशन्ति सिघस्य मुखे मृगा:
अर्थात जिस प्रकार से शेर के मुह में हिरन स्वयं प्रवेश नै करता ,उसके लिए उसे परिश्रम करना पड़ता है ,ठीक उसी प्रकार से हमे अपनी मनोकामनाए पूरी करने के लिए लक्ष्य प्रापर्ट करने के लिए,मेहनत करनी ही पड़ेगी
वेद में तो ये भी कहा गे है कि "ना ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवा:" अर्थात बिना परिश्रम के तो देवो कि मैत्री नै मिलती
वास्तव में अगर कहा जाये तो यह गलत नहीं होगा कि मेहनत और भाग्य दोनों एक ही साइकिल के दो पहिये है जिसमे पीछे का पहिया मेहनत है और आगे का पहिया भाग्य
यदि आप मेहनत करेंगे तो भाग्य भी आपका साथ देगा अन्यथा नहीं
इसलिए सदैव परिश्रम करे और परिश्रम ,मेहनत और परम निश्चय व संकल्प से लक्ष्य को प्राप्त करते हुए जीवन में हमेशा विजय को प्राप्त करे
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it is absolutely correct and i think parishram is more important and necessary to win in life
ReplyDeletea very good thought....i am impressed..i am sure that people will like this
ReplyDeleteit is absolutely correct and agree with you views...
ReplyDeleteshrameva jayte
good we should always work hard to achieve our goals in life
ReplyDeletevery good thought...nice group is arya samaj mandir