Pages

Saturday, 21 May 2011

हमेशा सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना चाहिये।

visit us at www.aryasamajdelhi.com for arya samaj mandir in delhi and www.aryasamajgurgaon.com for arya samaj mandir in hurgaon.
we provide religious services such as yagya hawan,vivah,marriage registration,intercaste marriage
हमेशा सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना चाहिये।
सत्य वास्तविकता होती है।जो वास्तविकता को अपनाकर के काम करता है वह हमेशा उत्तम फल पाता है।जैसे मैने ईन्टे बिखरी हुई देखी तो मैने उन्हे ठीक से रख दिया।तब मुझे उत्तम फल मिला।मैने देखते ही यह स्वीकारा था कि ईन्टे बिखरी हुई है।यदि मै यह नही स्वीकारता तो मुझे उत्तम फल नही मिलता।ईन्टो को उस अवस्था मे स्वीकार लेना सत्य को स्वीकारना कहाता है।तो यानी जो सत्य को स्वीकारेगा वह ही उत्तम फल पायेगा।जो सत्य को नही स्वीकारता है वह दुख पाता है।जो सत्य को नही स्वीकारेगा वह उत्तम कर्म नही करेगा।जिस वजह से वह उत्तम फल नही ले पायेगा।जैसे मै बाजार से कैले लाया।उनमे से एक कैला खराब था।मैने न देखा कि वो कैला खराब था और मै खा गया।फिर मेरे पेट मे दर्द हुआ और मै दुख पाया।यदि मै देखकर यह स्वीकार लेता कि कैला खराब है तो मेरे पेट मे दर्द न होता और न ही मुझे दुख मिलता।
यदि आप सत्य जानते है लेकिन उसे स्वीकरते नही है तो भी आपकी बहुत बड़ी गलती है।माना कि एक किसान है और उसका एक बहुत बड़ा खेत है।एक रात्रि बहुत अधिक बारिश हो गयी जिस वजह से किसान के खेत मे बहुत सारा पानी ही पानी भर गया।जब किसान सुबह उठकर खेत मे गया तो उसने देखा कि खेत मे पानी ही पानी है।उसे यह भी पता था कि बहुत ज्यादा पानी से फसले खराब हो जाती है।लेकिन फिर उसने यह सोचा कि खेत मे पानी बहुत अधिक नही है किन्तु पानी बहुत अधिक था।फिर उस किसान ने पानी को निकालने की कोशिश नही की और उसकी फसल खराब हो गयी।तो इससे यह समझ मे आता है कि केवल सत्य जानने से काम नही चलेगा।बल्कि उसे स्वीकारना भी पड़ेगा।

परमात्मा की पूजा कैसे करें?

परमात्मा की पूजा तीन भागों में की जाती हैं।उनमें से यदि एक भाग भी रह जाय तो परमेश्वर पूजा अधूरी ही रह जाती है।वे तीन भाग हैं:
(१)स्तुति (२)प्रार्थना (३)उपासना
(१)स्तुति:परमात्मा के गुणों की प्रशंसा करना।पहले जो वेदादि शास्त्रों में परमेश्वर के गुण लिखे हुए हैं उनको पढ लें।फिर उनकी प्रशंसा करें।
(२)प्रार्थना:परमात्मा से प्रार्थना करना।लेकिन उनसे कभी भी ऐसी प्रार्थना न करें जैसे आप मेरा कमरा साफ कर दो,आप मेरे खेत में पानी डाल दो,आप मुझे थोडा सा पैसा दे दो।जो प्रार्थना वेदों में लिखी हुई है उसे ही करें तो ही ज्यादा उतम है।क्योंकि वेद परमात्मा ने दिया है।उसमें जो उन्होनें कहा है वह असत्य कैसे हो सकता है।क्योन्कि जब परमात्मा ही असत्य बोलने लगेगा तो फिर यह सारा संसार नियम में कैसे रहेगा।तो इसलिये वेदों में जो पूजा लिखी हुई है उसे ही करनी चाहिये।
(३)उपासना:जैसे परमेश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव हैं वैसे अपने करना,परमात्मा को अपने निकट और अपने को परमात्मा के निकट जानना।
जो इस तरह से भगवान की पूजा करेगा वो सफल क्यों न होगा।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ।परमात्मा न्यायकारी है तो आप भी न्यायकारी बनें तो कितना सुख बढेगा।परमात्मा बलवान है तो आप भी बलवान बनें तो फिर आपको कोई भी रोक ही नहीं सकता है।उसी की प्रशंसा करना।उपासना केवल ईश्वर की ही करनी चाहिये क्योंकि परमात्मा से श्रेष्ठ और कोई भी नहीं हैं।
हम संध्या में दो काम तो अवश्य ही करते हैं।वे हैं स्तुति और प्रार्थना।फिर एक काम और शेष रह जाता है।वह है उपासना।महर्षि दयानन्दजी ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा है कि केवल संध्या से काम न चलेगा बल्कि जो हम माँग रहें हैं वो पुरुषार्थ से ग्रहण करने से मिलेगा।

visit www.aryasamajdelhi.com for religious services and more information