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we provide religious services such as yagya hawan,vivah,marriage registration,intercaste marriage
हमेशा सत्य का ग्रहण और असत्य का परित्याग करना चाहिये।
सत्य वास्तविकता होती है।जो वास्तविकता को अपनाकर के काम करता है वह हमेशा उत्तम फल पाता है।जैसे मैने ईन्टे बिखरी हुई देखी तो मैने उन्हे ठीक से रख दिया।तब मुझे उत्तम फल मिला।मैने देखते ही यह स्वीकारा था कि ईन्टे बिखरी हुई है।यदि मै यह नही स्वीकारता तो मुझे उत्तम फल नही मिलता।ईन्टो को उस अवस्था मे स्वीकार लेना सत्य को स्वीकारना कहाता है।तो यानी जो सत्य को स्वीकारेगा वह ही उत्तम फल पायेगा।जो सत्य को नही स्वीकारता है वह दुख पाता है।जो सत्य को नही स्वीकारेगा वह उत्तम कर्म नही करेगा।जिस वजह से वह उत्तम फल नही ले पायेगा।जैसे मै बाजार से कैले लाया।उनमे से एक कैला खराब था।मैने न देखा कि वो कैला खराब था और मै खा गया।फिर मेरे पेट मे दर्द हुआ और मै दुख पाया।यदि मै देखकर यह स्वीकार लेता कि कैला खराब है तो मेरे पेट मे दर्द न होता और न ही मुझे दुख मिलता।
यदि आप सत्य जानते है लेकिन उसे स्वीकरते नही है तो भी आपकी बहुत बड़ी गलती है।माना कि एक किसान है और उसका एक बहुत बड़ा खेत है।एक रात्रि बहुत अधिक बारिश हो गयी जिस वजह से किसान के खेत मे बहुत सारा पानी ही पानी भर गया।जब किसान सुबह उठकर खेत मे गया तो उसने देखा कि खेत मे पानी ही पानी है।उसे यह भी पता था कि बहुत ज्यादा पानी से फसले खराब हो जाती है।लेकिन फिर उसने यह सोचा कि खेत मे पानी बहुत अधिक नही है किन्तु पानी बहुत अधिक था।फिर उस किसान ने पानी को निकालने की कोशिश नही की और उसकी फसल खराब हो गयी।तो इससे यह समझ मे आता है कि केवल सत्य जानने से काम नही चलेगा।बल्कि उसे स्वीकारना भी पड़ेगा।
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