परमात्मा की पूजा तीन भागों में की जाती हैं।उनमें से यदि एक भाग भी रह जाय तो परमेश्वर पूजा अधूरी ही रह जाती है।वे तीन भाग हैं:
(१)स्तुति (२)प्रार्थना (३)उपासना
(१)स्तुति:परमात्मा के गुणों की प्रशंसा करना।पहले जो वेदादि शास्त्रों में परमेश्वर के गुण लिखे हुए हैं उनको पढ लें।फिर उनकी प्रशंसा करें।
(२)प्रार्थना:परमात्मा से प्रार्थना करना।लेकिन उनसे कभी भी ऐसी प्रार्थना न करें जैसे आप मेरा कमरा साफ कर दो,आप मेरे खेत में पानी डाल दो,आप मुझे थोडा सा पैसा दे दो।जो प्रार्थना वेदों में लिखी हुई है उसे ही करें तो ही ज्यादा उतम है।क्योंकि वेद परमात्मा ने दिया है।उसमें जो उन्होनें कहा है वह असत्य कैसे हो सकता है।क्योन्कि जब परमात्मा ही असत्य बोलने लगेगा तो फिर यह सारा संसार नियम में कैसे रहेगा।तो इसलिये वेदों में जो पूजा लिखी हुई है उसे ही करनी चाहिये।
(३)उपासना:जैसे परमेश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव हैं वैसे अपने करना,परमात्मा को अपने निकट और अपने को परमात्मा के निकट जानना।
जो इस तरह से भगवान की पूजा करेगा वो सफल क्यों न होगा।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ।परमात्मा न्यायकारी है तो आप भी न्यायकारी बनें तो कितना सुख बढेगा।परमात्मा बलवान है तो आप भी बलवान बनें तो फिर आपको कोई भी रोक ही नहीं सकता है।उसी की प्रशंसा करना।उपासना केवल ईश्वर की ही करनी चाहिये क्योंकि परमात्मा से श्रेष्ठ और कोई भी नहीं हैं।
हम संध्या में दो काम तो अवश्य ही करते हैं।वे हैं स्तुति और प्रार्थना।फिर एक काम और शेष रह जाता है।वह है उपासना।महर्षि दयानन्दजी ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा है कि केवल संध्या से काम न चलेगा बल्कि जो हम माँग रहें हैं वो पुरुषार्थ से ग्रहण करने से मिलेगा।
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(१)स्तुति (२)प्रार्थना (३)उपासना
(१)स्तुति:परमात्मा के गुणों की प्रशंसा करना।पहले जो वेदादि शास्त्रों में परमेश्वर के गुण लिखे हुए हैं उनको पढ लें।फिर उनकी प्रशंसा करें।
(२)प्रार्थना:परमात्मा से प्रार्थना करना।लेकिन उनसे कभी भी ऐसी प्रार्थना न करें जैसे आप मेरा कमरा साफ कर दो,आप मेरे खेत में पानी डाल दो,आप मुझे थोडा सा पैसा दे दो।जो प्रार्थना वेदों में लिखी हुई है उसे ही करें तो ही ज्यादा उतम है।क्योंकि वेद परमात्मा ने दिया है।उसमें जो उन्होनें कहा है वह असत्य कैसे हो सकता है।क्योन्कि जब परमात्मा ही असत्य बोलने लगेगा तो फिर यह सारा संसार नियम में कैसे रहेगा।तो इसलिये वेदों में जो पूजा लिखी हुई है उसे ही करनी चाहिये।
(३)उपासना:जैसे परमेश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव हैं वैसे अपने करना,परमात्मा को अपने निकट और अपने को परमात्मा के निकट जानना।
जो इस तरह से भगवान की पूजा करेगा वो सफल क्यों न होगा।
मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ।परमात्मा न्यायकारी है तो आप भी न्यायकारी बनें तो कितना सुख बढेगा।परमात्मा बलवान है तो आप भी बलवान बनें तो फिर आपको कोई भी रोक ही नहीं सकता है।उसी की प्रशंसा करना।उपासना केवल ईश्वर की ही करनी चाहिये क्योंकि परमात्मा से श्रेष्ठ और कोई भी नहीं हैं।
हम संध्या में दो काम तो अवश्य ही करते हैं।वे हैं स्तुति और प्रार्थना।फिर एक काम और शेष रह जाता है।वह है उपासना।महर्षि दयानन्दजी ने सत्यार्थ प्रकाश में कहा है कि केवल संध्या से काम न चलेगा बल्कि जो हम माँग रहें हैं वो पुरुषार्थ से ग्रहण करने से मिलेगा।
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